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मैं क्यों लिखता हूँ ( mai kyo likhta hu kai baar saval krti hi mujhse meri kavita) !

                                            मैं क्यों लिखता हूं

कई वार सवाल करती है  मुझसे 
मेरी कविता 
मैं क्यों लिखता हूं  
मैं क्यों पन्ने  रंगता हूं  
मैं पशोपेश में पड़  जाता हूं 

क्या जवाब दू 
अंदर बेचैनी-सी होती है 
तूफान -सा उठता है
आनन फानन कुछ पनने रंग देता हू 
                         शांति मिल जाती है

तभी दूसरा सवाल आ जाता है 
कितने स्वार्थी हो तुम 
सिर्फ अपना ही सोचते हो 
तुम्हें मेरी पीड़ा का ख्याल नहीं आता 
तुम्हारी पीड़ा ?
हां ,जब मुझे कोई नहीं पढता 
मुझे दर्द होता है 
असहनीय पीड़ा होती है 


मुझे अपना जन्म व्यर्थ लगता है 
पर किससे  कहू मैं अपनी पीड़ा 
मेरा सृजक ही मुझे  दोबारा नहीं पढता 
रख देता है सहेज के 
संकलन के इंतजार में 
ये तुम्हारी नहीं मेरे धैर्य की परीछा होती है

माना , मैं  अच्छी नहीं बनी ,क्यो ये मेरा कुसूर है ?
जाहिर है नहीं ,फिर मुझे इसकी सजा क्यों ?
मेरा अपमान क्यों ?
सवाल मुझे उद्वेलित कर देता है 
मैं निरूत्तर  हो जाता हूं 
नि :शब्द  हो जाता हूं 
सोचता हूं  ,मौन ही रहू  !
                                                                                                         
                                                                                                     -आयुष कुमार 

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